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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

मार्क्स के अध्ययन का मुख्य विषय सामाजिक आर्थिक विषमता थी। साहित्य विषयक उनकी जो अवधारणा है, वह उनके आर्थिक दृष्टिकोण से प्रभावित है। कवि एवं कलाकार एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश उसको प्रभावित किए बिना नहीं रह सकता है। अतः उसकी रचनाएँ भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती है। इस सम्बन्ध में उनका कहना है कि साहित्य एक निरपेक्ष सत्ता न होकर समाज की अर्थव्यवस्था से ही नियमित एवं संचालित होने वाली सापेक्ष सत्ता है। भौतिक जीवन की पद्धति से जीवन की सामाजिक राजनीतिक और बौद्धिक प्रक्रियाओं का विकास होता है। भौतिक जीवन में परिवर्तन होने के साथ विचारों और उसके परिणाम में भी परिवर्तन होते हैं। अस्तु, मार्क्स का कहना है कि "मनुष्य जीवन का अस्तित्व चेतना से निर्धारित नहीं होता, वरन् जीवन उसकी चेतना को निर्धारित करता है।'

'मनुष्य स्वयं अपने इतिहास का निर्माण करता है। किसी सामूहिक संकल्प अथवा सामूहिक योजना के आधार से किसी नियम निर्दिष्ट समाज में वह ऐसा नहीं करता। उसके प्रयत्न परस्पर टकराते रहते हैं और इसी कारण इस प्रकार के समस्त समाज आवश्यकता से परिचालित होते हैं जिसका नाम है आर्थिक आवश्यकता।

मार्क्सवादियों का मत है कि कलावादी प्रवृत्ति वही उत्पन्न होती है जहाँ कलाकार का अपना सामाजिक वातावरण के साथ असामंजस्य है। इसीलिए इन्होंने कला के लिए कला सिद्धान्त का विरोध किया। मार्क्स की कला विषयक मान्यता के सम्बन्ध में जार्ज रैवी का कथन है - "किसी कलाकृति की सबसे बड़ी कसौटी है कि वह पाठकों को बुद्धिगम्य हो सके और उत्कट आकांक्षा इसमें प्रतिबिम्बित हो। चिकित्सा और साहित्य का विषय सर्वप्रथम मानव होना चाहिए जहाँ कि मानवीय भावावेग सामाजिक पृष्ठभूमि के साथ नियत हों। हम मनुष्य को उसके वातावरण से दूर नहीं कर सकते, उसके आध्यात्मिक गुणों और समाज के क्रम में - जिसने उसका निर्माण किया है घनिष्ट सम्बन्ध है। इसे ही मानववाद कहते हैं, जिसमें नयी समाज व्यवस्था में नये मानव के गुणों और आध्यात्मिक मूल्यों पर जोर किया गया है।

मार्क्स ने कला सृजन को व्यक्तिगत चेतना का परिणाम न मानकर सामाजिक चेतना का प्रतिफल माना है। उनके अनुसार साहित्य समाज का दर्पण है। कलाकार या साहित्यकार सामाजिक व आर्थिक घटनाओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। साहित्य की अप्रत्यक्ष शक्ति से ही सामाजिक व्यवस्था परिवर्तित होती है। साहित्य की एक हुंकार से जीर्ण-शीर्ण मान्यताएँ धूल-धूसरित हो जाती हैं। साहित्य की इसी शक्ति से परिचित होने के कारण ही पूँजीपति साहित्य का संचालन इस तरीके से करते हैं कि शोषण एवं प्रतिक्रियावादी प्रवृत्तियाँ संवद्धित हो सकें। जबकि साहित्यकार इसका उपयोग समाज में व्याप्त तमाम प्रकार की विसंगतियों, अव्यवस्थाओं और अत्याचारों के विरुद्ध क्रान्ति की अवधरणा करने के लिए करते हैं।

धर्म और दर्शन के सम्बन्ध में मार्क्स का मानना है कि धर्म और दर्शन ये दोनों मनुष्य की ओर समाज को बहकाने का कार्य करते हैं। उन्होंने साहित्य के आर्थिक और सामाजिक पक्ष पर ही बल दिया है। आर्थिक व्यवस्था ही समाज एवं सभ्यता का निर्माण करती है तथा अर्थव्यवस्था ही समाज की भित्ति है और उसी पर सभ्यता, संस्कृति एवं साहित्य के भवन का निर्माण होता है।

 

मार्क्स के अनुसार - किसी पदार्थ अथवा घटना से प्रभावित होकर मनुष्य एक विशिष्ट आनन्द या (सौन्दर्य ) का अनुभव करता है। मानव की परिस्थितियाँ एवं कार्य ही वे महत्वपूर्ण घटक हैं जो इस बात पर निर्भर करते हैं कि कौन से पदार्थ और घटना में उसे आनन्द या सौन्दर्य मिलता है। मनुष्य की सौन्दर्य के प्रति रुचि उसके स्वभाव से ही आंकी जा सकती है उनके शब्दों में, 'किसी रूप को तभी स उन्दर कहा जायेगा, जब वह किसी धारणा पर आधारित हो। क्या बिना समझ बूझ वाले चेहरे को सुन्दर कहा जा सकता है? गोर्की का इस सम्बन में कहना है कि -

"सौन्दर्य कल्पना, जौ सौन्दर्य का स्रोत है न प्रकृति है न ईश्वर और न कोई बाह्य जगत, किन्तु वह मानव और उसका सर्जनात्मक क्रिया - व्यापार है, जिसने सौन्दर्य के नियम के अनुसार दुनिया को बदल दिया है।'

मार्क्स के परवर्ती अनुयायियों ने साहित्य को केवल सिद्धान्त प्रचार का हथियार बनाया। उन्होंने साहित्य के दो प्रतिमान स्थापित किए -

1- वर्ग संघर्ष -
2- कलाकार या कवि को यह बताना कि सामाजिक आर्थिक परिस्थितियाँ साहित्य को कैसे प्रभावित करती हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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